Friday, November 19, 2010

इश्क

मत नाम लो मोहब्बत का आँखों में खून उतर आता है
न कर दे खून ये खून कहीं उस खुनी का, वो जूनून उतर आता है
अब तो बेदर्द सी हो गई है वफ़ा की फितरत शायद
इसीलिए तो वफ़ा की वफ़ा में भी बेवफाई का कानून नजर आता है.

खाते थे जो कसमे कल तक इश्क क़यामत निभाने का
आज गम भी नहीं है उनको इस कदर से भूल जाने का
अब हम जीते हैं या की मरते हैं वो बेखबर हैं बेखबर
शक तो ऐसा होता है की बेवफा ने हमें सोचा ही था मिटाने का

हम करते थे यद् जिन्हें उन्होंने ही भुला दिया
मेरे पाक खास मोहब्बत का क्या अच्छा शिला दिया
जुदाई सह भी सकते थे गर वफ़ा से पेश आते वो
मगर उनसे अब शिकवा भी कैसा जिन्होंने खुद चेहरा चुरा लिया

मिटा दो नाम मोहब्बत का, वरना हम भी मरेंगे तुम भी मरोगे
बचेगा सिर्फ ये इश्क और न हम बचेंगे न तुम बचोगे
हँसेगी दुनिया, रोवोगे तुम, मरोगे तिल तिल ताराप कर मेरी तरह
हद हो गई अब बस करो वरना न हम रहेंगे न तुम रहोगे.

न होता अगर ये इश्क, तो ये बीमारी कभी इजाद नहीं होती
न टूटता किसी का दिल, और किसी से किसी को फरियाद नहीं होती
आग है ये जलती है ये, पल भर में सारे सपने खुद मिटाती है ये
मिट जाता अगर ये इश्क खुदा कसम, तो आबाद किसी की दुनिया यहाँ बर्बाद नहीं होती.

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