Monday, November 22, 2010

मुझको भी शैतान बना

महल बनाए, किला बनाया, शमसान बनाना क्यों छोर दिया ?
मंदिर बनाए, मस्जिद बनाए, भगवन बनाना क्यों छोर दिया?
कलमा बनाए, फतवा बनाए, कुरान बनाना क्यों छोर दिया?
मर्द बनाए, औरत बनाए, इन्सान बनाना क्यों छोर दिया?

महल किले तो बहुत बनाए, अब चल तू कोई शमसान बना.
बिकते हों जहा पे राम और अल्लाह, तू ऐसी कोई दूकान बना.
कलमे जिहाद तो बहुत बना लिए, तू अब नया कोई फरमान बना.
देख ली तेरी दुनिया भगवन, चल अब फिर से तू इन्सान बना.

सिंग दिखे, न पूंछ दिखा, न जहर का कोई खान मिला,
दन्त बिना, नाखून बिना, मुझे ऐसा एक हैवान मिला,
कटा भी नहीं, मारा भी नहीं, दो पैरों का एक श्वान मिला,
खून पिया जीते जी मेरा, एक दोस्त ऐसा मस्तान मिला.

कसम तुझे है खुदा हमारी, तू धरती पर इन्सान बना,
बीके जहाँ इन्सान की माती, तू ऐसी कोई दूकान बना,
अगर सको न खुदा तू खुद भी, तो चल थोरे से भगवान बना,
वो भी नहीं कर सकते तो तुम, मुझको भी शैतान बना.

मुझको भी शैतान बना, मुझको भी शैतान बना....

1 comment:

  1. No words for this piece brother. I only wish "Mujhko bhi Saitan bana"

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